Thursday, 26 September 2013

राठोड़ों की सम्पूरण खापें और उनके ठिकाने

राठोड़ों की सम्पूरण खापें और उनके ठिकाने जोधा ,कोटडिया ,गोगादेव ,महेचा ,बाड़मेरा ,पोकरणा राडधरा ,उदावत ,खोखर ,खावड़ीया ,कोटेचा ,उनड़, इडरिया ,
राठोड़ों की प्राचीन तेरह खापें थी | राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठोड दानेश्वरा खाप के राठोड़ थे | सीहाजी के वंशजो से जो खांपे चली वे निम्न प्रकार है |

1. इडरिया राठोड़ :- सोनग ( पुत्र सीहा ) ने इडर पर अधिकार जमाया | अतः इडर के नाम से सोनग के वंशज इडरिया राठोड़ कहलाये |
2. हटूकिया राठोड़ :- सोनग के वंशज हस्तीकुण्डी ( हटुंडी ) में रहे | वे हटूंडीया राठोड़ कहलाये | जोधपुर इतिहास में ओझा लिखते हे की सीहाजी से पहले हटकुण्डी में राष्ट्र कूट बालाप्रसाद राज करता रहा | उसके वंशज हटूंणडीया राठोड़ हे | परन्तु हस्तीकुण्डी शासन करने वाले राष्ट्रकूटों ( चंद्रवंशी ) का कोई वंशज नजर नहीं आता है | ( दोहठ ) राठोड़ - सीहा राठोड़ के बाद कर्मशः सोनग , अभयजी , सोहीजी , मेहपाल जी , , भारमल जी , व् चूंडारावजी हुए चूंडाराव अमरकोट के सोढा राणा सोमेश्वर के भांजे थे | इनके समय मुसलमान ने जोर लगाया की अमरकोट के सोढा हमारे से बेटी व्यवहार करें | तब चूंडाराव जो उस समय अमरकोट थे | इनकी सहायता से मुसलमान की बारातें बुलाई गयी एवं स्वयं इडर से सेना लेकर पहुंचे सोढों और राठोड़ों ने मिलकर मुसलमानों की बरातों को मार दिया | उस समय वीर चूंडराव को दू:हठ की उपाधि दी गयी थे अतः चूंडराव के वंशज दोहठ कहे गए | ये राठोड़ , अमरकोट , सोराष्ट्र , कच्छ , बनास कांठा , जालोर , बाड़मेर , जैसलमेर , बीकानेर जिलों में कहीं - कहीं निवास करते रहे है |

3. बाढ़ेल ( बाढ़ेर ) राठोड़ :- सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बीजाजी ने द्वारका के चावड़ो को बाढ़ कर ( काट कर ) द्वारका ( ओखा मंडल ) पर अपना राज्य कायम किया | इसी कारन बेरावलजी के वंशज बाढ़ेल राठोड़ हुए | आजकल ये बाढ़ेर राठोड़ कहलाते है | गुजरात में पोसीतरा , आरमंडा , बेट द्वारका बाढ़ेर राठोड़ों के ठिकाने थे |

4. बाजी राठोड़ :- बेरावल जी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठोड़ कहलाये है | गुजरात में महुआ , वडाना, आदीइनके ठिकाने हे | बाजी राठोड़ आज भी गुजरात में हि बसते है |

5. खेड़ेचा राठोड़ :- सीहा के पुत्र आस्थान ने गुहिलों से खेड़ जीता | खेड़ नाम से आश्थान के वंशज खेड़ेचा राठोड़ कहलाते है |
6. धुहड़ीया राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धूहड़ के वंशज धुहड़ीया राठोड़ कहलाये |
7 . धांधल राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठोड़ कहलाये | पाबूजी राठोड़ इसी खांप के थे | इन्होने चारणी को दीये गए वचनानुसार पणीग्रहण संस्कार को बीच में छोड़कर चारणी के गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की| यही पाबुजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते है |

8. चाचक राठोड़ : - आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठोड़ कहलाये |
9 . हरखावत राठोड़ :- आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज
10. जोलू राठोड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज
11 . सिंधल राठोड़ :- जोपसा के पुत्र सिंधल के वंशज | ये बड़े पराक्रमी हुए | इनका जेतारण पाली पर अधिकार था | जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया |
12. उहड़ राठोड़ :- जोपसा के पुत्र उहड़ के वंशज
13 . मुलु राठोड़ :- जोपसा के पुत्र मुलु के वंशज
14 बरजोर राठोड़ :- जोपसा के पुत्र बरजोड के वंशज
15. जोरावत राठोड़ :- जोपसा के वंशज
16. रेकवाल राठोड़ :- जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है | ये मल्लारपुर , बाराबकी , रामनगर , बड़नापुर , बहराईच उतरापरदेश में है |
17. बागड़ीया राठोड़ :- आस्थान जी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए | नोगासा बांसवाड़ा के ऐक स्तम्भ लेख बैसाख वदी 1361 में मालूम होता हे की रामा पुत्र वीरम सवर्ग सिधारा | ओझाजी ने इसी वीरम के वंशजों को बागड़ीया राठोड़ माना है | क्यूँ की बांसवाड़ा का क्षेत्र बागड़ कहलाता था |

18. छप्पनिया राठोड़ :- मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गाँवो का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है | यहाँ के राठोड़ छप्पनिया राठोड़ कहलाये | यह खांप बागदीया राठोड़ों से निकली है | उदयपुर रियासत में कणतोड़ गाँव की जागीरी थी |
19. आसल राठोड़ :- आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठोड़ कहलाये |
20. खोपसा राठोड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज |
21. सिरवी राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज |
22. पीथड़ राठोड़ :- आस्थान के पुत्र पीथड़ के वंशज |
23. कोटेचा राठोड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए | रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए | बीकानेर जिले में करनाचंडीवाल , हरियाणा में नाथूसरी व् भूचामंडी , पंजाब में रामसरा आदी इनके गाँव है |

24. बहड़ राठोड़ :- धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज |
25. उनड़ राठोड़ :- धुहड़ के पुत्र उनड़ के वंशज |
26. फिटक राठोड़ :- रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठोड़ हुए |
27. सुंडा राठोड़ :- रायपाल के पुत्र सुंडा के वंशज |
28 . महीपाल राठोड़ :- रायपाल के पुत्र महीपाल के पुत्र वंशज |
29. शिवराजोत राठोड़ :- रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज |
30. डांगी :- रामपाल के पुत्र डांगी के वंशज ढोलिन से शादी की अथवा इनके वंशज ढोली हुए |
31. मोहनोत :- रायपाल के पुत्र मोहन ने ऐक महाजन की पुत्री से शादी की | इस कारन उसके वंशज मुह्नोत वेश्य कहलाये मुह्नोत नेंणसी इसी ख्यात से थे |

32. मापावत राठोड़ :-रायपाल के वंशज मापा के वंशज
33. लूका राठोड़ :- रायपाल के वंशज लूका के वंशज
34. राजक:- रायपाल के वंशज रजक के वंशज
35. विक्रमायत राठोड़ :- रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज |
36. भोंवोत राठोड़ :- रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज |
37. बांदर राठोड़ :- रायपाल के पुत्र कानपाल हुए | कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाडा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठोड़ कहलाये | घड़सीसर ( बीकानेर ) राज्य बताते है |
38. ऊना राठोड़ :- रायपाल के पुत्र ऊडा के वंशज |
39. खोखर राठोड़ :-छाडा के पुत्र खोखर के वंशज | खोखर ने सांकडा , सनावड़ा आदी गाँवो पर अधिकार किया | और खोखर गाँव ( बाड़मेर ) बसाया | अलाऊधीन खिलजी ने सातल दे के समय सिवाना पर चढ़ाई की तब खोखर जी सातल दे के पक्ष में वीरता के साथ लड़े और युद्ध मे काम आये |
खोखर जिन गाँवो में रहते है :- जैसलमेर जिले में , निम्बली , कोहरा , भाडली , झिनझिनयाली , मूंगा , जेलू , खुडियाला , आस्कंद्र , भादरिया , गोपारयो, भलरीयो , जायीतरा, नदिया बड़ा , अडवाना, सांकडा ,पालवा ,सनावड़ा , खीखासरा , कस्वा चुरू - रालोत जोगलिया
बाड़मेर में - खोखर शिव , खोखर पार जोधपुर में - जुंडदिकयी, खुडियाला , खोखरी पाला , बिलाड़ा | नागोर में खोखरी पाली - बाली , गंदोग , खोखरी पाला , बिलाड़ा | विक्रमी 1788 में अहमदाबाद पर हमला किया गया | तब भी खोखारों ने नी वीरता दिखाई थी |

40. सिंहकमलोत राठोड़ :- छाडा के पुत्र सिंहमल के वंशज | अलाऊदीन के सातेलक के समय सिवाना पर चढ़ाई की थी |
41. बीठवासा उदावत राठोड़ :- रावल टीडा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा की बीठवास जागीर में था | अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये | उदाजी के पुत्र बीरम जी बीकानेर रियासत के साहुवे गाँव से आये | जोधाजी ने उनको बीठवसिया गाँव के जागीर दी | इस गाँव के आलावा वेग्डीयो और धुनाड़ीया गाँव भी इनकी जागीरी में थे |
42. सलखावत राठोड़ :- छाडा के पुत्र टीडा के पुत्र सलखा के वंशज सल्खावत राठोड़ कहलाये
43. जैतमालोत :- सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैत्मालोत राठोड़ कहलाये |बीकानेर में कहीं कहीं निवास करते है |
44. जूजाणीया :- जैतमाल के पुत्र खेतसी के वंशज है | गाँव थापाणा इनकी जागीर में था |
45.राड़धरा राठोड़ :- जैतमाल के पुत्र खिंया ने राड़धरा पर अधिकार किया | अतः इनके वंशज राड़धरा कहलाये |
46 . महेचा राठोड़ :- सलखा राठोड़ के पुत्र मल्लिनाथ बड़े प्रसिद्ध हुए | बाड़मेर का महेवा क्षेत्र सलखा के पिता टीडा के अधिकार में था | विक्रमी संवत 1414 में मुस्लिम सेना का आक्रमण हुआ | सलखा को केद कर लिया गया | केद से छूटने के बाद विक्रमी संवत 14२२ में आपने श्वसुर राणा रूपसी पड़िहार की सहायता से महेवा को वापिस जीत लिया | विक्रमी संवत 1430 में मुसलमानों का फिर आक्रमण हुआ | सलखा ने वीर गति पायी |सलखा के स्थान पर ( माला ) मल्लिनाथ राज्य का स्वामी हुआ | इन्होने मुसलमानों से सिवाना का किला जीता और अपने आपने छोटे भाई जैतमाल को दे दिया | व् छोटे भाई वीरम को खेड़ की जागीरी दे दी | नगर व् भिरड़ गढ़ के किले भी मल्लिनाथ ने अधिकार में किये | मलिनाथ शक्ति संचय कर राठोड़ राज्य का विस्तार करने और हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने पर तुले रहे | उन्होंने मुसलमानों के आक्रमण को विफल किया | मल्लिनाथ और उनकी राणी रुपादें , नाथ संप्रदाय में दिक्सीत हुए और ये दोनों सिद्ध माने गए | मल्लिनाथ के जीवन काल में हि उनके पुत्र जगमाल को गादी मिल गयी | जगमाल भी बड़े वीर थे | गुजरात का सुल्तान तीज पर इक्कठी हुयी लड़कियों को हर ले गया | तब जगमाल अपने योधाओं के साथ गुजरात गए और सुल्तान की पुत्री गीन्दोली का हरण कर लाया तब राठोड़ों और मुसलमानों में युद्ध हुआ | इस युद्ध में जगमाल ने बड़ी वीरता दिखाई | कहा जाता हे की सुल्तान के बीबी को तो युद्ध में जगह - जगह जगमाल हि दिखयी दिया
प्रस्तुत दोहा
पग पग नेजा पाड़ीया , पग -पग पाड़ी ढाल|
बीबी पूछे खान ने , जंग किता जगमाल ||
इन्ही जगमाल का महेवा पर अधिकार था | इस कारन इनके वंशज महेचा कहलाते है |
जोधपुर परगने में थोब , देहुरिया , पादरडी, नोहरो आदी इनके ठिकाने है | उदयपुर रियासत में नीबड़ी व् केलवा इनकी जागीर में थे | उनकी ख्याते निम्न है
1. पातावत महेचा :- जगमाल के पुत्र रावल मंडलीक के बाद कर्मश भोजराज , बीदा, नीसल , हापा , मेघराज व् पताजी हुए | इन्ही के वंशज पातावत कहलाये जालोर और सिरोही में इनके कई गाँव है |
2. कलावत महेचा :- मेघराज के पुत्र कल्ला के वंशज
3. दूदावत महेचा :- मेघराज के पुत्र दूदा के वंशज
4. उगा :- वरसिंह के पुत्र उगा के वंशज
47 . बाड़मेरा :- मल्लिनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाड़मेरा राठोड़ कहलाये | इनके वंशज बाड़मेर में और कई गाँवो में रहते है
48. पोकरणा :- मल्लिनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजो का पोकरण इलाके में निवास हुआ | वे पोकरणा राठोड़ कहलाये इनके गाँव सांकडा , सनावड़,लूना , चौक , मोडरड़ी , गुडी आदी जैसलमेर में है
49.खाबड़ीया :- मल्लिनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए | भारमल के पुत्र खीमुं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे इनके वंशज कच्छ में है | भारमल के दुसरे पुत्र माँढण के वंशज माडवी कच्छ में रहते है वंशज खाबड़ गुजरात के इलाके के नाम से खाबड़ीया कहलाये | इनके गाँव कुछ राजस्थान के बाड़मेर में रेडाणा और देदड़ीयार है कुछ घर पाकिस्तान में भी है
50. कोटड़ीया :- जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया अतः कुंपा के वंशज कोटड़ीया राठोड़ कहलाये | जगमाल के पुत्र खींव्सी के वंशज भी कोटड़ीया कहलाये इनके गाँव बाड़मेर में , कोटड़ा , बलाई , भिंयाड़ इत्यादि है |
51. गोगादे :- सलखा के पुत्र वीरम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठोड़ कहलाये | केतु ( चार गाँव ) सेखला ( 15 गाँव ) खिराज , गड़ा आदी इनके ठिकाने है
52 . देवराजोत :- बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठोड़ कहलाये | सेतरावो इनका मुख्या ठिकाना है | इसके आलावा सुवालिया आदी ठिकाने थे |
53. चाड़देवोत :- वीरम के पुत्र व् देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठोड़ कहलाये | जोधपुर परगने का देचू इनका मुख्या ठिकाना था | गीलाकोर में भी इनकी जागीरी थी |
54. जेसिधंदे :- वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज
55. सतावत :- चुंडा वीरमदेवोत के पुत्र सता के वंशज
56. भींवोत :- चुंडा के पुत्र भींव के वंशज | खाराबेरा जोधपुर इनका ठिकाना था |
57. अरड़कमलोत:- चुंडा के पुत्र अरड़कमलोत वीर थे | राठोड़ों और भाटियों के शत्रुता के कारन शार्दुल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लोट रहा था | तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध में दोनों हि वीरता से लड़े शार्दुल भाटी वीरगति प्राप्त हुए और राणी कोडमदे सती हुयी | अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए | इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमल राठोड़ कहलाये |

58. रणधीरोत :- चुंडा के पुत्र रणधीर के वंशज है फेफाना इनकी जागीर थी |
59. अर्जुनोत :- राव चुंडा के पुत्र अर्जुन के वंशज |
60. कानावत :- चुंडा के पुत्र कान्हा के वंशज |
61. पूनावत :- चुंडा के पुत्र पूनपाल के वंशज है | गाँव खुदीयास इनकी जागीरी में था |
62 , जैतावत राठोड़ : राव रणमलजी के ज्येष्ठ पुत्र अखेराज थे | इनके दो पुत्र पंचायण व् महाराज हुए | पंचायण के पुत्र जैतावत कहलाये | राठोड़ों ने जब मेवाड़ के कुम्भा से मंडोर वापिस लिया उस समय अखेराज जी ने अपना अंगूठा चीरकर खून से जोधा का तिलक किया और कहा आपको मंडोर मुबारक हो |उतर में जोधाजी ने कहा आपको बगड़ी मुबारक हो | उस समय बगड़ी (सोजत परगना )मेवाड़ से छीन लिया और बगड़ी अखेराज को प्रदान कर दी तब से यह रीती चली आई थी की जब भी जोधपुर के राजा का राजतिलक बगड़ी का ठाकुर अंगूठे के खून से राजतिलक होता |और बगड़ी ऐक बार पुनः उन्हें दी जाती |अखेराज के पोत्र जैताजी बड़े वीर थे | विक्रमी संवत 1600 में हुए सुमेल के युद्ध में शेरसाह से चालाकी से मालदेव आपने पक्ष के योधाओं को लेकर पलायन कर गए थे | परन्तु जैताजी और कुंपा जी ने अदभुत पराक्रम दिखाते हुए शेरशाह की सेना का मुकाबला किया | दोनों द्वारा अनेको शत्रुओं को धरा शाही कर वीरगति पाने पर शेरशाह उनकी मृत देह को देखकर दंग रह गया था | जैतावत ने समय समय पर मारवाड़ की रक्षा और राठोड़ों की आन के लिए रणभूमि में तलवारें बजायी थी | मारवाड़ में इनका प्रमुख ठिकाना बगड़ी था तथा दूसरा खोखरा | दोनों ठिकानो को हाथ का कुरव और ताज्मी का सम्मान प्राप्त था |

1. पिरथीराजोत जैतावत :-जैताजी के पुत्र प्रथ्वीराज के वंशज कहलाये | बगड़ी मारवाड़ और सोजत खोखरो , बाली इनके ठिकाने रहे |
2. आसकरनोत जैतावत :- जैताजी के पोत्र आसकरण देईदानोत के वंशज आसकरनोत जैतावत है | मारवाड़ में थावला , आलासण , रायरो बड़ो, सदा मणी, लाबोड़ी , मुरढावों , आदी ठिकाने इनके थे |
3. भोपपोत जैतावत :- जैताजी के पुत्र देई दानजी के पुत्र भोपत के वंशज भोपपोत जैतावत कहलाते है | मारवाड़ में खांडो देवल , रामसिंह को गुडो आदी ठिकाने इनके है |

63. कलावत राठोड़ :- राव रिड़मल के पुत्र अखेराज इनके पुत्र पंचारण के पुत्र कला के वंशज कलावत राठोड़ कहलाये | कलावत राठोड़ों के मारवाड़ में हूँण व् जाढण दो गाँवो के ठिकाने थे |
64. भदावत:- राव रणमल के पुत्र अखेराज के बाद क्रमश पंचायत व् भदा हुए | इन्ही भदा के वंशज भदावत राठोड़ कहलाये | देछु जालोर के पास तथा खाबल व् गुडा सोजत के पास के मुख्या ठिकाने थे |
65. कुम्पावत :- मंडोर के रणमल जी के पुत्र अखेराज के दों पुत्र पंचायण व् महाराज हए |महाराज के पुत्र कुम्पा के वंशज कुंपावत राठोड़ कहलाये | मारवाड़ का राज्य ज़माने में कुम्पा व् पंचायण के पुत्र जेता का महत्व पूरण योगदान रहा था | चितोड़ से बनवीर को हटाने में भी कुंपा की महत्वपूरण भूमिका थी | मालदेव ने वीरम का जब मेड़ता से हटाना चाहा , कुम्पा ने मालदेव का पूरण साथ लेकर इन्होने अपना पूरण योग दिया | मालदेव ने वीरम से डीडवाना छीना तो कुंपा को डीडवाना मिला | मालदेव की 1598 विक्रमी में बीकानेर विजय करने में कुंपा की महत्वपूरण भूमिका थी | शेरशाह ने जब मालदेव पर आक्रमण किया और मालदेव को अपने सरदारों पर अविश्वास हुआ तो उन्होंने अपने साथियों सहित युद्ध भूमि छोड़ दी परन्तु जेता व् कुम्पा ने कहा धरती हमारे बाप की दादाओं के शोर्य से प्राप्त हुयी है | हम जीवीत रहते उसे जाने नहीं देंगे | दोनों वीरों ने शेरशाह की सेना से टक्कर ली अद्भुत शोर्य दिखाते हुए मात्रभूमि की रक्षार्थ बलिदान हो गए | उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर शेरशाह के मुख से यह शब्द निकले पड़े ' मेने मुठ्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सलतनत खो दी थी | यह युद्ध सुमेल के पास चेत्र सुदी ५ विक्रमी संवत 1600 इसवी संवत 1544 में हुआ | कुंपा के 8 पुत्र थे | माँडण को अकबर ने आसोप की जागीरी डी थी | आसोप कुरव कायदे में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था | दुसरे पुत्र प्रथ्वीराज सुमेल युद्ध में मारे गए थे | उनके पुत्र महासिंह को बतालिया व् ईशरदास को चंडावल आदी के ठिकाने मिले थे | रामसिंह सुमेल युद्ध में मारे गए थे | उनके वंशजों को वचकला ठिकाना मिला | उनके पुत्र प्रताप सिंह भी सुमेल युद्ध में मारे गए |
मांडण के पुत्र खीवकर्ण ने कई युद्ध में भाग लिया वे बादशाह अकबर के मनसबदार थे | सूरसिंह जोधपुर के साथ दक्षिण के युधों में लड़े और बूंदी के साथ हुए युद्ध में काम आये |
इनके पुत्र किशनसिंह ने गजसिंह जोधपुर के साथ कई युध्दों में भाग लिया किशन सिंह ने शाहजहाँ के समुक्ख लिहत्थे नाहर को मारा | अतः ईनका नाम नाहर खां भी हुआ | विक्रमी संवत 1737 में नाहर खां ने पुष्कर में वराह मंदिर पर हमला किया | 6 अन्य कुम्पाव्तों सहित नाहर खां के पुत्र सूरज मल वहीँ काम आये | सूरज मल जी के छोटे भाई जैतसिंह दक्षिण के युद्ध में विक्रमी 1724 में काम आये | आसोप के महेशदासजी अनेक युद्धों में लड़े और मेड़ता युध्द में वीर गति पायी |
1. महेशदासोत कुम्पावत:- विक्रमी संवत 1641 में बादशाह ने सिरोही के राजा सुरतान को दंड देने मोटे राजा उदयसिंह को भेजा | इस युध् में महेशदास के पुत्र शार्दूलसिंह ने अद्भुत पराक्रम दिखाया और वहीँ रणखेत में रहे | अतः उनके वंशज भावसिंह को 1702 विक्रमी में कटवालिया के अलावा सिरयारी बड़ी भी उनका ठिकाना था | ऐक ऐक गाँव के भी काफी ठिकाने थे |
2. इश्वरदासोत कुंपावत :- कुंपा के पुत्र इश्वरदास के वंशज कहलाये | इनका मुख्या ठिकाना चंडावल था | यह हाथ कुरब का ठिकाना था | इश्वरदास के वंशज चाँद सिंह को महाराजा सूरसिंह ने 1652 विक्रमी में प्रदान किया था | 1658 ईस्वी के धरमत के युद्ध में चांदसिंह के पुत्र गोर्धनदास युद्ध में घोड़ा उठाकर शत्रुओं को मार गिराया और स्वयं भी काम आये | इस ठिकाने के नीचे 8 अन्य गाँव थे | राजोसी खुर्द , माटो ,सुकेलाव इनके ऐक ऐक गाँव ठिकाने है |
3. मांडनोत कुम्पावत:- कुम्पाजी के बड़े पुत्र मांडण के वंशज माँडनोत कहलाये | इनका मुख्या ठिकाना चांदेलाव था | जिसको माँडण के वंशज छत्र सिंह को विजय सिंह ने इनायत किया | इनका दूसरा ठिकाना रुपाथल था | जगराम सिंह को विक्रमी में गजसिंह पूरा का ठिकाना भी मिला | 1893 में वासणी का ठिकाना मानसिंह ने इनायत किया | लाडसर भी इनका ठिकाना था | यहाँ के रघुनाथ सिंह , अभयसिंह द्वारा बीकानेर पर आक्रमण करने के समय हरावल में काम आये | जोधपुर रियासत में आसोप , गारासणी , सर्गियो , मीठड़ी आदी , इनके बड़े ठिकाने थे |
4. जोधसिंहोत कुम्पावत:- कुम्पाजी के बाद क्रमश माँडण , खीवकण , किशनसिंह , मुकुन्दसिंह , जैतसिंह , रामसिंह , व् सरदारसिंह हुए |सरदार सिंह के पुत्र जोधसिंह ने महाराजा अभयसिंह जोधपुर की तरह अहमदाबाद के युद्ध में अच्छी वीरता दिखाई | महराजा ने जोधसिंह को गारासण खेड़ा, झबरक्या और कुम्भारा इनायत दिया |इनके वंशज कहलाये जोधसिन्होत
5.महासिंह कुम्पावत :- कुम्पाजी के पुत्र महासिंह के वंशज महासिंहोत कहलाते है \ महाराजा अजीतसिंह ने हठ सिंह फ़तेह सिंह को सिरयारी का ठिकाना इनायत दिया | 1847 विक्रमी में सिरयारी के केशरी सिंह मेड़ता युद्ध में काम आये | सिरयारी पांच गाँवो का ठिकाना था |
6. उदयसिंहोत कुंपावत :- कुम्पाजी के चोथे पुत्र उदयसिंह के वंशज उदयसिंहोत कुम्पावत कहलाते है | उदयसिंह के वंशज छतरसिंह को विक्रमी 1831 में बूसी का ठिकाना मिला | विक्रमी संवत 1715 के धरमत के युद्ध में उदयसिंह के वंशज कल्याण सिंह घोड़ा आगे बढाकर तलवारों की रीढ़ के ऊपर घुसे और वीरता दिखाते हुए काम आये | यह कुरब बापसाहब का ठिकाना था | चेलावास ,मलसा , बावड़ी , हापत, सीहास, रढावाल , मोड़ी ,आदी ठिकाने छोटे ठिकाने थे |
7.तिलोकसिन्होत कुम्पावत:- कूम्पा के सबसे छोटे पुत्र तिलोक सिंह के वंशज तिलोकसिन्होत कूम्पावत कहलाये | तिलोकसिंह ने सूरसिंह जोधपुर की तरह से किशनगढ़ के युद्ध में वीरगति प्राप्त की | इस कारन तिलोक सिंह के पुत्र भीमसिंह को घणला का ठिकाना सूरसिंह जोधपुर ने विक्रमी 1654 में इनायत किया |

66. जोधा राठोड़ :- राव रिड़मल के पुत्र जोधा के वंशज जोधा राठोड़ कहलाये | जोधा राठोड़ों की निम्न खांप है |
1. बरसिन्होत जोधा :- जोधा की सोनगरी राणी के पुत्र बरसिंह के वंशज बरसिन्होत जोधा कहलाये |बरसिंह अपने भाई दुदा के साथ मेड़ते रहे | परन्तु मुसलमानों ने उन्हें मेड़ते से निकाल दिया | मालवा के झबुवा में बरसिन्होत जोधा राठोड़ों का राज्य था |
2. रामावत जोधा :- जोधपुर के शासक जोधा के बाद क्रमश बरसिंह आसकरण हुए | आसकरण के पोत्र रामसिंह ने बांसवाड़ा की गद्दी के लिए चौहानों और राठोड़ों के बीच युद्ध विक्रमी 1688 में वीरता तथा वीरगति को प्राप्त हुए | रामसिंह के तेरह पुत्र थे | जो रामावत राठोड़ कहलाये | रामसिंह के तीसरे पुत्र जसवंतसिंह के जयेष्ट पुत्र अमरसिंह को साठ गाँवो सहित खेड़ा की जागीरी मिली तो रतलाम राज्य में था | यह अंग्रेजी सरकार द्वार कुशलगढ़ बांसवाडा के नीचे कर दिया गया | विक्रमी संवत 1926 में कुशलगढ़ बांसवाडा के नीचे कर दिया |
3. भारमलोत जोधा :- जोधा की हूलणी राणी के पुत्र भारमल के वंशज भारमलोत जोधा कहलाये | इनके वंशज झाबुआ राज्य में निवास करते है |
4. शिवराजोत जोधा :- जोधा की बघेली राणी के पुत्र शिवराज के वंशज शिवराजोत जोधा कहलाये |
5. रायपालोत जोधा :- जोधा को भटियानी राणी के पुत्र रायपाल के वंशज रायपालोत जोधा कहलाये |
6. करमसोत जोधा :- जोधा की भटियानी राणी के पुत्र करम्सी के वंशज करमसोत जोधा कहलाये | खींवसर ( 26 गाँव ) बड़ा ठिकाना था | इसके अतिरिक्त भोजावास , धरणी , पांचोड़ी , बागणवाडो, सांढीको, आचीणे, हमीरानो , देयु , गोवणा , टालो माडपुरी, चटालियो , सोयला , नागड़ी , खारी, भदवासी , गिरावड़ी, हरिमो , जीवास , सीगड़, कादरपूरा , थलाजू , बह, आसरनडो, उस्तरा , सावंत कुआ , अमरलायी , रंगालो, सिरानो , छगाडो, सोमडावास , गीगालो , राजुवास , जाखणीओ , बाल्वो, डावरो , बाहारो वडो, आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे | बीकानेर राज्य में रायसर , बकसेउ , नोखा आदी ठिकाने थे |
7. बणवीरोत जोधा :- जोधा की भटियानी राणी के पुत्र बणवीर के वंशज बणवीरोत जोधा कहलाये |
8. खंगारोत जोधा :- राव जोधा के पुत्र जोगा के पुत्र खंगार हुए | इसी खंगार के वंशज खंगारोत जोधा कहलाये | खारीयो , पुनास, जालसू , बड़ी ,डाहोली, खारी और छापली इनके गाँव ऐक ऐक गाँव के ठिकाने है |
9. नरावत:- सूजा के बेटे नरा के वंशज | भडानो , बासुरी , बुहु, कसुबी, बाधणसर आदी इनके ठिकाने थे |
10. सांगावत जोधा :- सूजा के पुत्र सांगा के वंशज
11. प्रतापदासोत :- सूजा के पुत्र प्रतापदास के वंशज
12. देविदासोत :- सूजा के पुत्र देवीदास के वंशज |
13. सिखावत :- सूजा के पुत्र सिखा के वंशज |
14. नापावत :- सूजा के पुत्र नापा के वंशज |
15. बाघावत जोधा :- रिड़मल जी मंडोर के पुत्र राव जोधा राठोड़ कहलाये | जोधाजी की म्रत्यु के बाद बड़े पुत्र सातल की म्रत्यु विक्रमी संवत 1549 इसवी संवत 1492 में होने पर जोधाजी के दुसरे पुत्र सूजा गादी पर बेठे | सुजाजी के पुत्र बाघाजी विक्रमी संवत 1549 में सोजत की चढ़ाई में काम आये | इसी बाघा के वंशज बाघावत राठोड़ कहलाये | मारवाड़ में बाघावत जोधाओं का मुख्या ठिकाना पहाड़पूरा था | इसके अलावा आरण और सिकारपूरा ऐक ऐक गाँव ठिकाने थे |
16. प्रतापसिहोत जोधा :- सूजा के पुत्र प्रताप सिंह के वंशज |
17. गंगावत जोधा : - जोधपुर के राव सूजा के पश्चात् बाघा के पुत्र और सूजा के पोत्र गंगा गादी बेठे | इसी गंगा के वंशज गंगावत जोधा कहलाये | मारवाड़ में गंगावत जोधाओं के कालीजाड़ , हेजावास , साली आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने है |
18. किश्नावत जोधा :- गंगा के पुत्र किशनसिंह के वंशज किश्नावत जोधा कहलाते है |
19.रामोत जोधा :- गंगा के पुत्र राव मालदेव जोधपुर के शासक थे | इनके पुत्र राम के वंशज रामोत जोधा कहलाये | मारवाड़ में पावा इनका मुख्या ठिकाना है | मालवा में अमझेरा इनका राज्य था | इनका वर्णन अमझेरा राज्य के अनागर्त कर दिया गया |
20. केशोदास जोधा :-राम के पुत्र केशोदास के वंशज केशोदाश जोधा भी कहलाते है |
21. चन्द्रसेणोत जोधा : - राव मालदेव जोधपुर के पुत्र चन्द्रसेन का जन्म 1598 विक्रमी में हुआ था | मालदेव के पश्चात विक्रमी संवत 1619 में गढ़धि पर बेठे | राना प्रताप की तरह उन्होंने भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की | इस कारन जोधपुर का राज्य अकबर ने इनके भाई उदयसिंह को दे दिया | इन्ही चन्द्र सेन के वंशज चन्द्रसेणोत जोधा कहलाये | भिनाय, बाँधनवाडा, देवलिया , बडली, केरोठ , देवगढ़ बगेरा इनके बड़े ठिकाने तथा पालड़ी , नीब्ड़ी, कोठारिया , छापड़ा , डीकावो, पावटा , इनके ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
22. रतनसिहोत जोधा :- जोधपुर के राव गंगा के पुत्र रतनसिंह के वंशज रतनसिहोत जोधा कहलाये | भाद्रजूण ( 11 गाँवो का ठिकाना ) बीजल ( तीन गाँव ) इनके मुख्या ठिकाने थे | इनके आलावा ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
23. महेश दासोत जोधा :- राव मालदेव के पुत्र महेश दास के वंशज महेश दासोत जोधा कहलाये | पाटोडी ,( तीन गाँव ) केसवाणा ( दो गाँव ) नेवरी ( २ गाँव ) आदी इनके मुख्या ठिकाने थे | तथा सिरथलो , फलसुंड , नागाणी , नेह्वायी , साईं , सीख आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
24.भोजराजोत जोधा :- राव मालदेव के पुत्र भोजराज के वंशज भोजराजोत जोधा कहलाये | भगासणी इनका गाँव का ठिकाना था |
25. अभेराजोत जोधा :- राव मालदेव के पुत्र रायमल के पुत्र कनोराव के पुत्र अभेराज के वंशज अभेराजोत जोधा कहलाये | इनके मुख्या ठिकाने नीबी ( 11 गाँव ) था | हुडावास , बोसणी और डावरीयोणी दो दो गाँवो के ठिकाने तथा खारठिओ , दताउ , चक , देवडाटी, ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
26. केसरीसिहोत जोधा :- राव मालदेव के पुत्र रायमल के पुत्र केशरीसिंह के वंशज केसरीसिहोत जोधा कहलाये | लाडणु ( ६ गाँव ) सीगरावट( तीन गाँव ) लेहड़ी ( पांच गाँव ) गोराउ ( तीन गाँव ) मामडोदा( दो गाँव ) तूबरो ( दो गाँव ) सेतो ( दो गाँव ) सीगरावट( दो गाँव ) खारडीया ( दो गाँव ) कुस्बी जाखड़ा . अंगरोटियों आदी मुख्य ठिकाने और ऐक ऐक गाँव के करीब 40 ठिकाने थे | केसरी सिंह के वंशज अर्जुनसिहोत जोधा है | सीवा, रसीदपूरा , रामदणा , कुसुम्भी , मिढ़ासरी, सावराद, लोढ़सर , खारडीया , मंगलपूरा , मांजरा, तान्याउ , ललासरी, सिकराली , कंग्सिया , कुमास्यो, रताऊ , भंडारी , मोलासर आदी इनके गगाँव है\
27. बिहारीदासोत जोधा :- मालदेव जोधपुर के पोत्र कल्याणदास के पुत्र इश्वर दास के पुत्र बिहारी दास के वंशज बिहारीदासोत जोधा कहलाते है | मारवाड़ में रोहिसी तथा मुडीयासरी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने है |
28. करभ सेणोत :- मालदेव के पोत्र उग्रसेन चंद्रसेनोत के पुत्र कमरसेनोत के वंशज करमसेनोत जोधा हुए | भिणाय इनका ठिकाना था |
29. भानोत जोधा :- मालदेव के पुत्र भानजी के वंशज |
30. डुंगरोत जोधा :- मालदेव के पुत्र डूंगरसी के वंशज |
31.गोयंददासोत जोधा :- बादशाह अकबर ने चंद्रसेन द्वारा अधीनता स्वीकार न करने पर उनके छोटे भाई उदयसिंह को जोधपुर का राज्य दे दिया | इन्ही उदयसिंह के पुत्र भगवान दास के पुत्र गोयंददास हुए इन्ही के वंशज गोयंद दास जोधा हुए | इनके मुख्य ठिकाने खेरवे ( 10 गाँव ) बाबरो ( 6 गाँव ) बलाडो( दो गाँव ) थे | इनके आलावा खारडी, बुटीयास, अलचपुरो , आंतरोली बड़ी रायिको ( दो गाँव ) आदी ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
32.जयतसिहोत जोधा :- मालदेव के पुत्र उदयसिंह के पुत्र जयत सिंह के वंशज |
33. माधोदास जोधा :- उदयसिंह के पुत्र माधोदास के वंशज है | पिसाग़ण , महरू , जून्या , पारा ,गोविन्दगढ़ आदी इनके ठिकाने थे |
34. सकतसिहोत जोधा :- मोटे राजा उदयसिंह के पुत्र सकत सिंह के वंशज सकतसिहोत जोधा कहलाये | इनका मुख्या ठिकाना खरवा व् किशनगढ़ राज्य में रघुनाथ पूरा ऐक ठिकाना था | राव गोपालसिंह खरवा भारतीय स्वाधीनता संग्राम में ख्याति प्राप्त स्वतन्त्रता सेनानी थे |
35. किशनसिहोत जोधा :- उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह के नवीन राज्य किशनगढ़ की स्थापना की | इनके वंशज किशन सिहोत जोधा कहलाये | रलावता , फतह गढ़ , ढसूक,करकेडी इन्ही के ठिकाने है |
36. नरहर दासोत :- उदयसिंह के पुत्र नहरदास के वंशज | नदणी , नरवर , भदूण इनके ठिकाने थे |
37.गोपालदासोत जोधा :- मोटे राजा उदय सिंह जोधपुर के पुत्र भगवान दास के पुत्र गोपाल दास के वंशधर गोपालदासोत जोधा कहलाते है | तोलासर , मालावासणी , खातोलायी , इनके ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
38. जगन्नाथ जोधा :- उदय सिंह ( जोधपुर ) के पुत्र नहर दास के पुत्र जगन्नाथ के वंशज जगन्नाथ जोधा कहलाते है | मेड़ता के पास मोरेरा इनका ठिकाने थे |
39 . रतनसिहोत जोधा :- मोटे राजा उदयसिंह के बाद क्रमश दलपतसिंह , महेश दास ,रतनसिंह हुए | रतनसिंह ने मालवा में रतलाम राज्य की स्थापना की | रतनसिंह अपने समय में ख्याति प्राप्त योधा थे | धरमत( 1658ई ) के युद्ध मे सेना का सञ्चालन किया और युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए सच्चे क्षत्रिय की भांती वीरगति प्राप्त हुए | इन्ही रतनसिंह के वंशज रतन सिहोत जोधा हुए | इनके पांचवे वंशज केशवदास ने सीतामउ के राजा मानसिंह के छोटे भाई जयसिंह ने सेलाना राज्य की स्थापना की | मालवा काछी बडोजा, मुल्तान , अमलेटा , जड़वास , सेमालिया, बडवास , पतलासी आदी ठिकाने थे |
40. कल्यान्दासोत जोधा :- रतनसिंह के कल्याण दासजी के वंशज कल्याणदासोत जोधा कहलाये है | जालणीयासर , आकोडो, जानेवो , इनके एक ऐक गाँव के ठिकाने थे | मालवा में मोरिया खेड़ी ( सीतामउ राज्य ) टोलखेड़ी ( जावरा राज्य ) तथा कोटा राज्य में बाराबड़ोदा इनके ठिकाने है |
41. फतहसिहोत जोधा :- रतनसिंह के रतलाम के छोटे भाई फतह सिंह ने धरमत के युद्ध में वीरगति पायी | इनके वंशज फतहसिहोत जोधा कहलाये | धार के पास इनके दो गाँव पाना व कोद विड़वाल थे और ग्वालियर राज्य में पचलाना और रुनिजा इनके ठिकाने थे | तथा बोरखेड़ा, सरसी , केरवासा , सादाखेड़ी , इनके ठिकाने थे |इनके आलावा मध्य परदेश में मुगेला , पाणदा, लाखरी , आक्या , सांगथली , सुरखेड़ा , मसवाणीया , सारंगी , दोतरिया , सरवन आदी ठिकाने थे |
42. जैतसिंहोत जोधा :- मोटे राजा उदयसिंह के पुत्र जैतसिंह के वंशज जैतसिहोत जोधा कहलाये | इनके जैतगढ़, मेवाड़ीया , ( अजमेर प्रान्त ) खैरवा , नोखा ( मेड़ता ) कणमोर , मोरन आदी ठिकाने थे |
43. रत्नोत जोधा :- मोटे राजा उदयसिंह के पोत्र हरिसिंह जैतसिंहोत के ऐक पुत्र रतनसिंह के वंशज रतनोत जोधा कहलाये | मारवाड़ में इनके मुख्या ठिकाने में दुगोली खास ( 6 गाँव ) लोहोतो ( तीन गाँव ) पठाणा रो बास ?( दो गाँव ) थे | करीब 15 ऐक ऐक गाँव के ठिकाने थे |
44. अमरसिहोत जोधा :- मोटे राजा उदयसिंह के बाद जोधपुर राज्य गादी पर क्रमश सूरसिंह व् गजसिंह बेठे | अमरसिंह गजसिंह के बड़े पुत्र थे \ गजसिंह के छोटे पुत्र जसवंतसिंह को उतराधिकारी बना दिया गया | इस कारन अमरसिंह नाराज होकर शाहजहाँ के पास चले गए | शाहजहाँ ने अमरसिंह को बड़ोदा, झलान, सांगोद, आदी परगने जागीर में देकर मनसबदार बना लिया | अमरसिंह ने वहां कई युधों में भाग लिया | नागोर भी उनके अधिकार में था | मतीरा की राड़ से अमरसिंह और बीकानेर नरेश में बिगड़ गयी | शाहजहाँ के दरबार में बीकानेर का पक्ष लेने के कारन सलावत खां को 1701 विकर्मी में दरबार में हि मार डाला और स्वयं भी बिठलदास गोड के पुत्र अर्जुन व् अन्य व्यक्तियों द्वारा मारे गए | वीरता के इतिहास में अमरसिंह का नाम प्रसिद्ध है | अमरसिंह के ख्याल राजस्थान के गाँवो - गाँवो में गए जाते है | इन्ही के वंशज अमरसिहोत जोधा कहलाये | इनका मुख्या ठिकाना गाँव सेवा था|
45. आन्नदसिहोत जोधा :- जसवंतसिंह जोधपुर के पुत्र अजीतसिंह के पुत्र आन्नदसिंह थे | इनके वंशज आन्नदसिहोत जोधा कहलाये | इडर गुजरात में हे जो इनका राज्य था
लगातार ..................
जय माताजी की
प्रस्तुतकर्ता surendar singh bhati tejmalt

परमार ( पंवार ) राजवंश की उतपत्ति और राज्य

परमार ( पंवार ) राजवंश की उतपत्ति और राज्य
परमार पंवार राजवंश
परमार 36 राजवंशों में माने गए है | ८वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी विक्रमी तक इनका इस देश में विशाल सम्राज्य था इन वीर क्षत्रियों के इतिहास का वर्णन करने से पूर्व उतपत्ति के सन्दर्भ देखे | परमारों तणी प्रथ्वी

उत्पत्ति :- परमार क्षत्रिय परम्परा में अग्निवंशी माने जाते है इसकी पुष्टि साहित्य और शिलालेख और शिलालेख भी करते है | प्रथमत: यहाँ उन अवतरणों को रखा जायेगा जिसमे परमारों की उतपत्ति अग्निकुंड से बताई गयी हे बाद में विचार करेंगे | अग्निकुंड से उतपत्ति सिद्ध करने वाला अवतरण वाक्पतिकुंज वि. सं. १०३१-१०५० के दरबारी कवी पद्मगुप्त द्वारा रचित नवसहशांक -चरित पुस्तक में पाया जाता है जिसका सार यह है की आबू -पर्वत वशिष्ठ ऋषि रहते थे | उनकी गो नंदनी को विश्वामित्र छल से हर ले गए | इस पर वशिष्ठ मुनि ने क्रोध में आकर अग्निकुंड में आहूति दी जिससे वीर पुरुष उस कुंड से प्रकट हुआ जो शत्रु को पराजीत कर गो को ले आया जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने उस का नाम परमार रखा उस वीर पुरुष के वंश का नाम परमार हुआ |

भोज परमार वि. १०७६-१०९९ के समय के कवि धनपाल ने तिलोकमंजरी में परमारों की उत्पत्ति सम्बन्धी प्रसंग इस प्रकार है |
वाषिष्ठेसम कृतस्म्यो बरशेतरस्त्याग्निकुंडोद्रवो |
भूपाल: परमार इत्यभिघयाख्यातो महिमंडले ||
अधाष्युद्रवहर्षगग्दद्गिरो गायन्ति यस्यार्बुदे |
विश्वामित्रजयोजिझ्ततस्य भुजयोविस्फर्जित गुर्जरा: ||

मालवा नरेश उदायित्व परमार के वि.सं. ११२९ के उदयपुर शिलालेख में लिखा है |
''अस्त्युवीर्ध प्रतीच्या हिमगिरीतनय: सिद्ध्दं: (दां) पत्यसिध्दे |
स्थानअच ज्ञानभाजामभीमतफलदोअखर्वित: सोअव्वुर्दाव्य: ||४||
विश्वमित्रों वसिष्ठादहरत व (ल) तोयत्रगांतत्प्रभावाज्यग्ये वीरोग्नीकुंडाद्विपूबलनिधनं यश्चकरैक एव ||५||
मारयित्वा परान्धेनुमानिन्ये स ततो मुनि: |
उवाच परमारा (ख्यण ) थिर्वेन्द्रो भविष्यसि ||६||

बागड़ डूंगरपुर बांसवाडा के अर्थुणा गाँव में मिले परमार चामुंडाराज द्वारा बनाये गए महादेव मंदिर के फाल्गुन सुदी ७ वि. ११३७ के शिलालेख में लिखा है - कोई प्रचंड धनुषदंड को धारण किया हुआ था और अपनी विषम द्रष्टि से यज्ञोपवित धारण कीये हुए था और अपनी विषम द्रष्टि से जीवलोक को डराने का पर्यत्न करता हुआ शत्रुदल के संहार्थ पसमर्थ था | ऐसा कोई प्रखर तेजस्वी अद्भुत पुरुष उस यज्ञ कुंड से मिला |
यह वीर पुरुष वसिष्ठ की आज्ञा से शत्रुओं का संहार करके और कामधेनु अपने साथ में लेकर ऋषि वशिष्ठ के चरण कमलों में नत मस्तक होता हुआ उपस्थित हुआ |उस समय वीर के कार्यों से संतुष्ट होकर ऋषि ने मांगलिक आशीर्वाद देते हुए उसको परमार नाम से अभिहित किया |
परमारों के उत्पत्ति सम्बन्धी ऐसे हि विवरण बाद के शिलालेख व् प्रथ्वीराज रासो आदी साहित्यिक ग्रंथो में भी अंकित किया गया है |
इन विवरणों के अध्धयन से मालूम होता हे की 11वि, १२ वि. शताब्दी के साहित्यिक व् शिलालेखकार उस प्राचीन आख्यान से पूरी तरह प्रभावित थे जिसमे कहा गया है की ऐक बार वशिष्ठ की कामधेनु गाय को विश्वामित्र की सेना को पराजीत करने के लिए कामधेनु ने शक, यवन ,पल्ह्व ,आदी वीरों को उत्पन्न किया |

फिर भी यह निस्संकोच कहा जा सकता है की 11वि. सदी में परमार अपनी उत्पति वशिष्ठ के अग्निकुंड से मानते थे और यह कथानक इतना पुराना हो चूका था जिसके कारन 11वि. शताब्दी के साहित्य और शिलालेखों में चमत्कारी अंश समाहित हो गया था वरना प्रकर्ति नियम के विरुद्ध अग्निकुंड से उत्पत्ति के सिद्धांत को कपोल कल्पित मानते है पर ऐसा मानना भी सत्य के नजदीक नहीं हे कोई न कोई अग्निकुंड सम्बन्धी घटना जरुर घटी है जिसके कारन यह कथानक कई शताब्दियों बाद तक जन मानस में चलता रहा है और आज भी चलन रहा है | अग्निवंश से उत्पत्ति सम्बन्धी इस घटना को भविष्य पुराण ठीक ढंग से प्रस्तुत करता है | इस पुराण में लिखा है |

''विन्दुसारस्ततोअभवतु |
पितुस्तुल्यं कृत राज्यमशोकस्तनमोअभवत ||44||
एत्सिमन्नेत कालेतुकन्यकुब्जोद्विजोतम: |
अर्वूदं शिखरं प्राप्यबंहाहांममथो करोत ||45|
वेदमंत्र प्रभाववाच्चजाताश्च्त्वाऋ क्षत्रिय: |
प्रमरस्सामवेदील च चपहानिर्यजुर्विद: ||46||
त्रिवेदी चू तथा शुक्लोथर्वा स परीहारक: |
भविष्य पुराण

भावार्थ यह हे की विंदुसार के पुत्र अशोक के काल में आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज के ब्राह्मणों में ब्रह्म्होम किया और वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न किये सामवेद प्रमर ( परमार ) यजुर्वेद से चाव्हाण ( चौहान ) 47 वें श्लोक का अर्थ स्पष्ट नहीं है परन्तु परिहारक से अर्थ प्रतिहार और चालुक्य ( सोलंकी) होना चाहिए | क्यूंकि प्रतिहारों को प्रथ्विराज रासो आदी में अग्नि वंशी अंकित किया गया है और परम्परा में भी यही माना जाता है |
भविष्य पुराण के इन श्लोकों से कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आती है | प्रथमतः आबू पर किये गए इस यज्ञ का समय निश्चिन्त होता हे यह यज्ञ माउन्ट आबू पर सम्राट अशोक के पत्रों के काल में २३२ -से २१५ ई. पू. हुआ था |दुसरे यह यज्ञ वशिष्ठ और विश्वामित्र की शत्रुता के फलस्वरूप नहीं हुआ | बल्कि वेदादीधर्म के प्रचार प्रसार के लिए ब्रहम यज्ञ किया और यह यज्ञ वैदिक धर्म के पक्ष पाती चार पुरुषार्थी क्षत्रियों के नेतृत्व में विश्वामित्र सम्बन्धी प्राचीन ट=यज्ञ घटना को भ्रम्वंश अंकित किया गया | वशिष्ठ की गाय सम्बन्ध घटना के समय यदि परमार की उत्पत्ति हो तो बाद के साहित्य रामायण ,महाभारत ,पुराण आदी में परमारों की उतपत्ति का उल्लेख आता पर ऐसा नहीं है | अतः परमारों की उत्पत्ति वशिष्ठ -विश्वामित्र सम्बन्धी घटना के सन्दर्भ में हुए यज्ञ से नहीं , अशोक के पुत्रों के काल में हुए ब्रहम यग्य से हुयी मानी जानी चाहिए |
आबू पर हुए यज्ञ को सही परिस्थतियों में समझने पर यह निश्किर्य है की वैदिक धर्म के उत्थान के लिए उसके प्रचार प्रसार हेतु किसी वशिष्ठ नामक ब्राहमण ने यग्य करवाया , चार क्षत्रियों ने उस यज्ञ को संपन्न करवाया ,उनका नवीन ( यज्ञ नाम ) परमार ,चौहान . चालुक्य और प्रतिहार हुआ | अब प्रसन्न यह हे की वे चार क्षत्रिय कोन थे ? जो इस यज्ञ में सामिल हुए थे | अध्धयन से लगया वे मूलतः सूर्य एवम चंद्र वंश क्षत्रिय थे |
अग्नि यज्ञ की घटना से पूर्व परमार कोन था ? इसकी विवेचना करते हे | पहले उन उदहारण को रखेंगे जो परमारों के साहित्य ,ताम्र पत्रादि में अंकित किये गए है और तत्वपश्चात उनकी विवेचना करेंगे|
सबसे प्राचीन उल्लेख परमार सियक ( हर्ष ) के हरसोर अहमदाबाद के पास में मिले है वि. सं. १००५ के दानपत्र में पाया गया हे जो इस प्रकार है -

परमभट्टारक महाराजाधिराज राज परमेश्वर
श्रीमदमोघवर्षदेव पादानुधात -परमभट्टारक्
महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमदकालवर्षदेव -
प्रथ्वीवल्लभ- श्रीवल्लभ नरेन्द्रपादनाम
तस्मिन् कुलेककल्मषमोषदक्षेजात: प्रतापग्निहतारिप्क्ष:
वप्पेराजेति नृप: प्रसिद्धस्तमात्सुतो भूदनु बैर सिंह (ह) |१ |
द्रप्तारिवनितावक्त्रचन्द्रबिम्ब कलकतानधोतायस्य कीतर्याविहरहासावदातया ||२||
दुव्यरिवेरिभुपाल रणरंगेक नायक: |
नृप: श्री सीयकसतमात्कुलकल्पद्र मोभवत |३|

यह सियक परमार जिसके पिता का नाम बैरसी तथा दादा का नाम वाक्पति "( वप्पेराय ) था , या वाक्पति मुंज परमार ( मालवा ) का पिता था और राष्ट्रकूटों का इस समय सामंत था | अतः इस ताम्रपत्र में पहले आपने सम्राट के वंश का परिचय देता हे और तत्त्व पश्चात् आपने दादा और आपने पिता का नाम अंकित करता है | भावार्थ यह है की - परमभट्टारक महाराजाधिराज राज परमेश्वर श्री मान ओधवर्षदेव उनकें चरणों का ध्यान करने वाला परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर श्रीमान अकालवर्षदेव उस कुल में वप्पेराज ,बैरसी ,व् सियक हुए | इससे अर्थ निकलता है परमार भी राष्ट्रकूटों से निकले हुए है थे | अधिक उदार अर्थ करें तो राष्ट्र कूटों की तरह परमार भी यादव थे यानी चन्द्रवंशी थे |

ब्रहमक्षत्रकुलीन: प्रलीनसामंतचक्रनुत चरण: |
सकलसुक्रतैकपूजच श्रीभान्मुज्ज्श्वर जयति ||

इस प्रकार विक्रमी की 11वि. सदी सो वर्ष की अवधि में हि परमारों की उत्पति के सन्दर्भ में तीन तरह के उल्लेख मिलते हेई अग्निकुंड से उत्पत्ति ,राष्ट्र कूटों से उत्पति ब्रहम क्षत्र कुलीन | इतिहासकार सो वर्ष की अवधि के हि इन विद्वानों ने तीन तरह की बाते क्यूँ लिख दी ? क्या इन्होने अज्ञानवश ऐसा लिखा ? हमारा विचार यह हे की तीनो मत सही है | मूलतः चंद्रवंशी राष्ट्रकूटों के वंश में थे | अतः प्रसंगवश १००५ वि.के ताम्र पात्र अपने लिए लिखा की जिस कुल में अमोध वर्ष आदी राष्ट्र कूट राजा थे उस कुल में हम भी है | परमार आबू पर हुए यज्ञ की घटना से सम्बंधित था अतः परमारों को अग्निवंशी भी अंकित किया गया | ओझाजी ने ब्रहमक्षत्र को ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों गुणों युक्त बताया है | परमार पहले ब्राहमण थे फिर क्षत्रिय हो गए |
हमारे प्राचीन ग्रन्थ यह तो सिद्ध करते हे की बहुत से क्षत्रिय ब्राहमण हो गए मान्धाता क्षत्रिय के वंशज , विष्णुवृद्ध हरितादी ब्राहमण हो गए | चन्द्रवंश के विश्वामित्र , अरिष्टसेन आदी ब्राहमण को प्राप्त हो गए | पर ऐसे उदहारण नहीं मिल रहे हे जिनसे यह सिद्ध होता हे की कोई ब्राहमण परशुराम में क्षत्रिय के गुण थे | फिर भी ब्राहमण रहे ,शुंगो ,सातवाहनो ,कन्द्वों आदी ब्राहमण रहे | परमारों को तो प्राचीन साहित्य में भी क्षत्रिय कहा गया हे | यशोवर्मन कन्नोज ८वीं शताब्दी के दरबारी कवी वप्पाराव ( बप्पभट ) ने राजा के दरबारी वाक्पति परमार की क्षत्रियों में उज्वल रत्न कहा है | अतः परमार कभी ब्राहमण नहीं थे क्षत्रिय हि थे | ब्राहमण से क्षत्रिय होने की बात कल्पना हि है | इसका कोई आधार नहीं है ओझाजी ने ब्रहमक्षत्र का अर्थ ब्राहमण व् क्षत्रिय दोनों गुणों से युक्त बतलाया हे पर हमारा चिंतन कुछ दूसरी तरह मुड़ रहा हैं | यहाँ केवल '' ब्रह्मक्षेत्र '' शब्द नहीं है | यह ब्रहमक्षत्र कुल है | प्राचीन साहित्य की तरह ध्यान देते हे तो ब्रहमक्षत्र कुल की पहचान होती है |
श्रीमद भगवद गीता में चंद्रवंशी अंतिम क्षेमक के प्रसंग में लिखा है -
दंडपाणीनिर्मिस्तस्य क्षेमको भवितानृप:
ब्रहमक्षत्रस्य वे प्राक्तोंवशों देवर्षिसत्कृत: ||( भा.१ //22//44 )
इसकी व्याख्या विद्वानो ने इस प्रकार की है -
तदेव ब्रहमक्षत्रस्य ब्रहमक्षत्रकुलयोयोर्नी: कारणभूतो
वंश सोमवंश: देवे: ऋषिभिस्रचसतत्कृत अनुग्रहित इत्यर्थ |
अर्थात इस प्रकार मेने तुम्हे ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों की उत्पति स्थान सोमवंश का वर्णन सुनाया है |
( अनेक संस्क्रत व्यख्यावली टीका भागवत स्कंध नवम के ४८६ प्र. ८७ के अनुसार ) इस प्रकार विष्णु पुराण अंश ४ अध्याय २० वायु पुराण अंश 99 श्लोक २७८-२७९ में भी यही बात कही गयी है | बंगाल के चंद्रवंशी राजा विजयसेन ( सेनवंशी ) के देवापाड़ा शिलालेख में लिखा गया है -
तस्मिन् सेनान्ववाये प्रतिसुभटतोत्सादन्र्व (ब्र) हमवादी |
स व्र ह्क्षत्रियाँणजनीकुलशिरोदाम सामंतसेन: ए . इ. जि . १ प्र ३०७
इसमें विजयसेन के पूर्वज सामंतसेन को ब्रहमवादी को ब्रहमवादी और ब्रहमक्षत्रिय कुल का शिरोमणि कहा है |
इन साक्ष्यों में ब्रहमक्षत्र कुल चन्द्रवंश के लिए प्रयोग हुआ है | किसी सूर्यवंशी राजा के लिए ब्रहमक्षत्र ? कुल का प्रयोग नजर नहीं आया |इससे मत यह हे की चंद्रवंशी को ब्रहमक्षत्र कुल भी कहा गया है | सोम क्षत्रिय + तारा ब्राहमनी =बुध | इसी तरह ययाति क्षत्रिय क्षत्रिय + देवयानी ब्राह्मणी =यदु | इस प्रकार देखते हे की चन्द्रवंश में ब्राहमण और क्षत्रिय दोनों जातियों का रक्त प्रवाहित था | संभवतः इस कारन चन्द्रवंश की और हि संकेत है | इस प्रकार परमार मूलतः चंद्रवंशी आधुनिक आलेख इस बात का समर्थन करते है - पंवार प्रथम चंद्रवंशी लिखे जाते थे | बहादुर सिंह बीदासर
पंजाब में अब भी चंद्रवंशी मानते है| अम्बाराया परमार ( पंवार ) चंद्रवंशी जगदेव की संतान पंजाब में है | और फिर परमार आबू के ब्रहमहोम में शामिल होने से अग्निवंशी भी कहलाये | आगे चलकर अग्निवंशी इतना लोकपिर्य हो गया की परमारों को अग्निवंशी हि कहने लग गए और शिलालेखों और साहित्य में अग्निवंशी हि अंकित किया गया |
इसके विपरीत परमारों के लिए मेरुतुन्गाचार्य वि. १३६१ स्थिवरावली में उज्जेन के गिर्दभिल्ल को सम्प्रति ( अशोक का पुत्र ) के वंश में होना लिखता है | गर्दभिल्ल ( गन्धर्वसेन ) विक्रमदित्य ( पंवार ) का पिता माना जाता है इससे परमार मोर्य सिद्ध होते है परन्तु सम्प्रति के पुत्रों में कोई परमार नामक पुत्र का अस्तित्व नहीं मिलता है | दुसरे सम्प्रति jain धरम अनुयायी था और उसका पिता अशोक ऐसा सम्राट था जिसने इस देश में नहीं ,विदेशों तक बोध धर्म फैला दिया था | अतः सम्प्रति के पुत्र या पोत्र का वैदिक धरम के लिए प्रचार के लिए होने वाले ब्रहम यज्ञ में शामिल होना समीचीन नहीं जान पड़ता | दुसरे यह आलेख बहुत बाद का 14वीं शताब्दी का है जो शायद परमारों की ऐक शाखा मोरी होने से परमारों की उत्पत्ति मोर्यों से होना मान लिया लगता है | अन्य पुष्टि प्रमाणों के सामने यह साक्ष्य विशेष महत्व नहीं रखता | अतः मूलतः परमार चन्द्रवंशी और फिर अग्निवंशी हुए |

प्राचीन इतिवृत -
परमारों का प्राचीन इतिवृत लिखने से पूर्व यह निश्चिन्त करना चाहिए की उनका प्राचीन इतिहास किस समय से प्रारंभ होता है | इतिहास के प्रकंड विद्वान् ओझाजी ने शिलालेखों के आधार पर परमारों का इतिहास घुम्राज के वंशज सिन्धुराज से शुरू किया है | जिसका समय परमार शासक पूर्णपाल के बसतगढ़ ( सिरोही -राजस्थान ) में मिले शिलालेखों की वि. सं. १०९९ के आधार पर पूर्णपाल से ७ पीढ़ी पूर्व के परमार शासक सिन्धुराज का समय ९५९ विक्रमी के लगभग होता है | और इस सिन्धुराज को यदि मुंज का भाई माना जाय तो यह समय १०३१ वि. के बाद का पड़ता है | इससे पूर्व परमार कितने प्राचीन थे ? विचार करते है |
चाटसु ( जयपुर ) के गुहिलों के शिलालेखों में ऐक गुहिल नामक शासक की शादी परमार वल्लभराज की पुत्री रज्जा से हुयी थी | इस हूल का पिता हर्षराज राजा मिहिर भोज प्रतिहार के समकालीन था जिसका समय वि. सं. ८९३ -९३८ था | यह शिलालेख सिद्ध करता है की इस शिलालेख का वल्लभराज ,सिन्धुराज परमार ( मारवाड़ ) का वंशज नहीं था इससे प्राचीन था |राजा यशोवर्मन वि. ७५७-७९७ लगभग कन्नोज का सम्राट था उसके दरबारी वाक्पति परमार के लिए कवी बप्पभट्ट आपने ब्प्पभट्ट चरित में लिखता है की वह क्षत्रियों में महत्वपूर्ण रत्न तथा परमार कुल का है इससे सिद्ध होता हे की कन्नोज में यशोवर्मन के दरबारी वाक्पति परमार चाटसु शिलालेख से प्राचीन है | शिलालेख और तत्कालीन साहित्य के विवरण के पश्चात अब बही व्=भाटों के विवरणों की तरह ध्यान दे |
भाटी क्षत्रियों के बहीभाटों के प्राचीन रिकार्ड के आधार पर इतिहास में टाड ने लिखा हे - भाटी मंगलराव ने शालिवाहनपुर ( वर्तमान में सियाल कोट भाटियों की राजधानी ) जब छूट गयी तो पूरब की तरह बढ़े और नदी के किनारे रहने वाले बराह तथा बूटा परमारों के यहाँ शरण ली | यह किला यदु - भाटी इतिहास्वेताओं के अनुसार सं. ७८७ में बना था वराहपती ( परमार के साथ मूलराज की पुत्री की शादी हुयी | केहर के पुत्र तनु ने वराह जाती को परास्त किया और अपने पुत्र विजय राज को बुंटा जाती की कन्या से विवाह किया | ये परमार हि थे |
देवराज देरावर के शासक को धार के परमारों से भी संघर्ष हुआ |
वराह परमारों के साथ इन भाटियों के सघर्ष का समर्थन राजपूताने के इतिहास के लेखक जगदीस सिंह गहलोत भी करते हे | देवराज का समय प्रतिहार बाऊक के मंडोर शिलालेख ८९४ वि. के अनुसार वि. ८९४ के लगभग पड़ता है | इस शिलालेख में लिखा हे की शिलुक प्रतिहार ने देवराज भट्टीक वल्ल मंडल ( वर्तमान बाड़मेर जैसलमेर क्षेत्र ) के शासक को मार डाला | इस द्रष्टि से देवराज से ६ पढ़ी पूर्व मंगलराव का समय 700 वि. के करीब पड़ता है | इस हिसाब से ७वीं शताब्दी में भी परमारों का राज्य राजस्थान के पश्चमी भाग पर था |
उस समय परमारों की वराह और बुंटा खांप का उल्लेख मिलता है नेणसी ऋ ख्यात बराह राजपूत के कहे छ; पंवारा मिले इसी प्रष्ट पर देवराज के पिता भाटी विजयराज और बराधक संघर्ष का वर्णन है | नेणसी ने आगे लिखा हे की धरणीवराह परमार ने अपने नो भाइयों में अपने राज्य को नो कोट ( किले ) में बाँट दिया | इस कारन मारवाड़ नोकोटी मारवाड़ कहलाती है |
नेणसी ने नोकोट सम्बन्धी ऐक छपय प्रस्तुत किया है -

मंडोर सांबत हुवो ,अजमेर सिधसु |
गढ़ पूंगल गजमल हुवो ,लुद्र्वे भाणसु |
जोंगराज धर धाट हुयो ,हासू पारकर |
अल्ह पल्ह अरबद ,भोजराज जालन्धर ||
नवकोटी किराडू सुजुगत ,थिसर पंवारा हरथापिया |
धरनो वराह घर भाईयां , कोट बाँट जूजू किया ||

अर्थात मंडोर सांवत ,को सांभर ( छपय को ,पूंगल गजमल को ,लुद्र्वा भाण को ,धरधाट ( अमरकोट क्षेत्र ) जोगराज को पारकर ( पाकिस्तान में ) हासू को ,आबू अल्ह ,पुलह को जालन्धर ( जालोर ) भोजराज को और किराडू ( बाड़मेर ) अपने पास रखा |

धरणीवराह नामक शासक शिलालेखीय अधरों पर वि १०१७ -१०५२ के बीच सिद्ध होता है | परन्तु परमारों के नव कोटों पर अधिकार की बात सोचे तो यह धरणीवराह भिन्न नजर आता है | मंडोर पर सातवीं शताब्दी के लगभग हरिश्चंद्र ब्राहमण प्रतिहार के पुत्रों का राज्य बाऊक के मंडोर के शिलालेख ८९४ वि. सं. सिद्ध होता है अतः धरणीवराह के भाई सांवत करज्य इस समय से पूर्व होना चाहिए | इस प्रकार लुद्रवा पर भाटियों का अधिकार 9वि. शताब्दी वि. में हो गया था | इस प्रकार भटिंडा क्षेत्र पर जो वराह पंवार शासन कर रहे थे | मेरी समझ धरणीवराह के हि वंशज थे जो अपने पूर्व पुरुष धरणीवराह के नाम से आगे चलकर वराह पंवार ( परमार ) कहलाने लगे थे | ऐसी स्थति में धरणीवराह का समय ६टी ७वि शताब्दी में परमार पश्चमी राजस्थान पर शासन कर रहे थे | परमारों ने यहाँ का राज्य नाग जाती से लिया होगा जेसे निम्न पद्य में संकेत हे

परमांरा रुधाविया ,नाग गिया पाताल |
हमें बिचारा आसिया किणरी झूले चाल ||

मंडोर की नागाद्रिन्दी ,वहां का नागकुंड ,नागोर (नागउर ) पुष्कर का नाम ,सीकर के आसपास का अन्नत -अन्नतगोचर क्षेत्र आदी नाम नाग्जाती के राजस्थान में शासन करने की और संकेत करते हें | तक्षक नाग के वंशज टाक नागोर जिले में 14वीं शताब्दी तक थे | उनमे से हि जफ़रखां गुजरात का शासक हुआ | यह नागों का राज्य चौथी पांचवी शताब्दी तक था | इसके बाद परमारों का राज्य हुआ | चावड़ा व् डोडिया भी परमारों की साखा मानी जाती है | चावडो की प्राचीनता विक्रम की ७वि चावडो का भीनमाल में राज्य था | उस वंश का व्याघ्रमुख ब्रह्मस्पुट सिद्धांत जिसकी रचना ६८५ वि. में हुयी उसके अनुसार वह वि. ६८५ में शासन कर रहा था इन सब साक्ष्यों से जाना जा सकता हे की राजस्थान के पश्चमी भाग पर परमार ६ठी शताब्दी से पूर्व हि जम गए थे और 700 वि. सं. पूर्व धरणीवराह नाम का कोई प्रसिद्द परमार था जिसने अपना राज्य अपने सहित नो भागो में बाँट दिया था |
इन श्रोतों के बाद जब पुरानो को देखते हे तो भविष्य पुराण के अनुवाद मालवा पर शासन करने वाले शासकों के नाम मिलते हे - विक्रमादित्य ,देवभट्ट ,शालिवाहन ,गालीहोम आदी | विक्रमादित्य परमार माना जाता था | इसका अर्थ हुआ विक्रम संवत के प्रारंभ में परमारों का अस्तित्व था | भविष्य पुराण के अनुसार अशोक के पुत्रों के काल में आबू पर्वत पर हुए ब्रहमयज्ञ में परमार उपस्थित था | इस प्रकार परमारों का अस्तित्व दूसरी शादी ई.पू. तक जाता है |
अब यहाँ परमारों के प्राचीन इतिवृत को संक्षिप्त रूप से अंकित किया जा रहा है | अशोक के पुत्रों के काल २३२ से २१४ ई.पू. आबू पर ब्रहमहोम (यज्ञ ) हुआ | इस यज्ञ में कोई चंद्रवंशी क्षत्रिय शामिल हुए | ऋषियों ने सोमवेद के मन्त्र से उसका यज्ञ नाम प्रमार( परमार ) रखा | इसी परमार के वंशज परमार क्षत्रिय हुए | भविष्य पुराण के अनुसार यह परमार अवन्ती उज्जेन का शासक हुआ | ( अवन्ते प्रमरोभूपश्चतुर्योजन विस्तृताम | अम्बावतो नाम पुरीममध्यास्य सुखितोभवत ||49|| भविष्य पुराण पर्व खंड १ अ. ६ इसके बाद महमद ,देवापी ,देवहूत ,गंधर्वसेन हुए | इस गंधर्वसेन का पुत्र विक्रमदित्य था भविष्य पुराण के अनुसार यह विक्रमादित्य जनमानस में बहुत प्रसिद्द रहा है | इसे जन श्रुतियों में पंवार परमार माना है | प्रथम शताब्दी का सातवाहन शासक हाल अपने ग्रन्थ गाथा सप्तशती में लिखता हे -
संवाहणसुहरतोसीएणदेनतण तुह करे लक्खम |
चलनेण विक्कमाईव् चरीऊँअणु सिकिखअंतिस्सा ||

भविष्य पुराण १४वि शदी विक्रम प्रबंध कोष आदी ग्रन्थ विक्रमादित्य के अस्तित्व को स्वीकारते हे | संस्कृत साहित्य का इतिहास बलदेव उपाध्याय लिखते हे -
सरम्या नगरीमहान न्रपति: सामंत चक्रंतत |
पाश्रवेततस्य च सावीग्धपरिषद ताश्र्वंद्र बिबानना |
उन्मत: सच राजपूत: निवहस्तेवन्दिन: ताकथा |
सर्वतस्यवशाद्गातस्स्रतिपंथ कालाय तस्मे नमः ||
उस काल को नमस्कार है जिसने उज्जेनी नगरी ,राजा विक्रमादित्य ,उसका सामंतचक्र और विद्वत परिषद् सबको समेट लिया | यह सब साक्ष्य विक्रमादित्य ने शकों को पराजीत कर भारतीय जनता को बड़ा उपकार किया | मेरुतुंगाचार्य की पद्मावली से मालूम होता हे की गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य ने शकों से उज्जयनी का राज्य लोटा दिया था |विक्रमादित्य का दरबार विद्वानों को दरबार था |विद्वानों की राय में इस समय पुन: कृतयुग का समय आ रहा था | अतः शकों पर विजय की पश्चात् विक्रमादित्य का दरबार पुनः विद्वानों का दरबार था | विद्वानों की राय से कृत संवत का सुभारम्भ किया | फिर यही कृत संवत ( सिद्धम्कृतयोद्ध्रे मोध्वर्षशतोद्ध्र्यथीतयो २००८५ ( २ चेत्र पूर्णमासी मालव जनपद के नाम से मालव संवत कहलाया |उज्जेन के चारों और का क्षेत्र मालव ( मालवा ) कहलाता था | उसी जनपद के नाम से मालव संवत कहलाया | फिर 9वीं शताब्दी में विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत हो गया | कथा सरित्सागर में विक्रमादित्य के पिता का नाम महेंद्रदित्य लिखा गया है |
विक्रमादित्य के बाद भविष्य पुराण के अनुसार रेवभट्ट ,शालिवाहन ,शालिवर्धन ,सुदीहोम ,इंद्रपाल ,माल्यवान ,संभुदत ,भोमराज ,वत्सराज ,भाजराज ,संभुदत ,विन्दुपाल ,राजपाल ,महिनर,शकहंता,शुहोत्र ,सोमवर्मा ,कानर्व ,भूमिपाल ,रंगपाल ,कल्वसी व् गंगासी मालवा के शासक हुए | इसी प्रकार करीब ५वि ६ठी शताब्दी तक परमारों का मालवा पर शासन करने की बात भविष्य पुराण कहता हे | मालूम होता हे हूणों ने मालवा से परमारों का राज्य समाप्त कर दिया होगा | संभवत परमार यहाँ सामंत रूप थे
पश्चमी राजस्थान आबू ,बाड़मेर ,लोद्रवा ,पुगल आदी पर भी परमारों का राज्य था और उन्होंने संभतः नागजाती से यह राज्य छीन लिया था | इन परमारों में धरणीवराह नामक प्रसिद्द शासक हुआ जिसने अपने सहित राज्य को नो भागो में बांटकर आपने भाइयों को भी दे दिया था | वी .एस परमार ने विक्रमादित्य से धरणीवराह तक वंशावली इस प्रकार दी हे
विक्रमादित्य के बाद क्रमशः ,विक्रम चरित्र ,राजा कर्ण, अहिकर्ण ,आँसूबोल ,गोयलदेव ,महिपाल ,हरभान.,राजधर ,अभयपाल ,राजा मोरध्वज ,महिकर्ण ,रसुल्पाल,द्वन्दराय ,इति , यदि यह वंशावली ठीक हे तो वंशावली की यह धारा विक्रमादित्य के पुत्र या पोत्रों से अलग हुयी | क्यूँ की यह वंशवली भविष्य पुराण की वंशवली से मेल नहीं खाती हे | नवी शताब्दी में वराह परमारों से देवराज भाटी ने लोद्रवा ले लिया था तथा वि. की सातवीं में ब्राहमण हरियचंद्र के पुत्रों मंडोर का क्षेत्र लिया | सोजत का क्षेत्र हलो ने छीन लिया था तब परमारों का राज्य निर्बल हो गया था | आबू क्षेत्र में परमारों का पुनरुथान vikram की 11वीं शताब्दी में हुआ | पुनरुत्थान के इस काल में आबू पश्चमी राजस्थान के परमारों में सर्वप्रथम सिन्धुराज का नाम मिलता है इस प्रकार मालवा व् पश्चमी राजस्थान के परमारों का प्राचीन राज्य वर्चस्वहीन हो गया |
गुजरात का हमीर जाडेजा अपनी ससुराल अमरकोट (सिंध) आया हुआ था | उसका विवाह अमरकोट के राणा वीसलदे सोढा की पुत्री से हुआ था | राणा वीसलदे का पुत्र महिंद्रा व हमीर हमउम्र थे इसलिए दोनों में खूब जमती थी साथ खेलते,खाते,पीते ,शिकार करते और मौज करते | एक दिन दोनों शिकार करते समय एक हिरण का पीछा करते करते दूर लोद्र्वा राज्य की काक नदी के पास आ पहुंचे उनका शिकार हिरण अपनी जान बचाने काक नदी में कूद गया, दोनों ने यह सोच कि बेचारे हिरण ने जल में जल शरण ली है अब उसे क्या मारना | शिकार छोड़ जैसे दोनों ने इधर उधर नजर दौड़ाई तो नदी के उस पार उन्हें एक सुन्दर बगीचा व उसमे बनी एक दुमंजिली झरोखेदार मेड़ी दिखाई दी | इस सुनसान स्थान मे इतना सुहावना स्थान देख दोनों की तबियत प्रसन्न हो गयी | अपने घोड़े नदी मे उतार दोनों ने नदी पार कर बागीचे मे प्रवेश किया इस वीरानी जगह पर इतना सुन्दर बाग़ देख दोनों आश्चर्यचकित थे कि अपने पडौस मे ऐसा नखलिस्तान ! क्योंकि अभी तक तो दोनों ने ऐसे नखलिस्तानों के बारे मे सौदागरों से ही चर्चाएँ सुनी थी |

उनकी आवाजें सुन मेड़ी मे बैठी मूमल ने झरोखे से निचे झांक कर देखा तो उसे गर्दन पर लटके लम्बे काले बाल,भौंहों तक तनी हुई मूंछे,चौड़ी छाती और मांसल भुजाओं वाले दो खुबसूरत नौजवान अपना पसीना सुखाते दिखाई दिए | मूमल ने तुरंत अपनी दासी को बुलाकर कर कहा- नीचे जा, नौकरों से कह इन सरदारों के घोड़े पकड़े व इनके रहने खाने का इंतजाम करे, दोनों किसी अच्छे राजपूत घर के लगते है शायद रास्ता भूल गए है इनकी अच्छी खातिर करा |

मूमल के आदेश से नौकरों ने दोनों के आराम के लिए व्यवस्था की,उन्हें भोजन कराया | तभी मूमल की एक सहेली ने आकर दोनों का परिचय पूछा | हमीर ने अपना व महिंद्रा का परिचय दिया और पूछा कि तुम किसकी सहेली हो ? ये सुन्दर बाग़ व झरोखेदार मेड़ी किसकी की है ? और हम किस सुलक्षीणी के मेहमान है ?
मूमल की सहेली कहने लगी-"क्या आपने मूमल का नाम नहीं सुना ? उसकी चर्चा नहीं सुनी ? मूमल जो जगप्यारी मूमल के नाम से पुरे माढ़ (जैसलमेर) देश मे प्रख्यात है | जिसके रूप से यह सारा प्रदेश महक रहा है जिसके गुणों का बखान यह काक नदी कल-कल कर गा रही है | यह झरोखेदार मेड़ी और सुन्दर बाग़ उसी मूमल का है जो अपनी सहेलियों के साथ यहाँ अकेली ही रहती है |"कह कर सहेली चली गयी |

तभी भोजन का जूंठा थाल उठाने आया नाई बताने लगा -"सरदारों आप मूमल के बारे मे क्या पूछते हो | उसके रूप और गुणों का तो कोई पार ही नहीं | वह शीशे मे अपना रूप देखती है तो शीशा टूट जाता है | श्रंगार कर बाग़ मे आती है चाँद शरमाकर बादलों मे छिप जाता है | उसकी मेड़ी की दीवारों पर कपूर और कस्तूरी का लेप किया हुआ है,रोज ओख्लियों मे कस्तूरी कुटी जाती है,मन-मन दूध से वह रोज स्नान करती है,शरीर पर चन्दन का लेप कराती है | मूमल तो इस दुनिया से अलग है भगवान् ने वैसी दूसरी नहीं बनाई |"

कहते कहते नाई बताने लगा-"अखन कुँवारी मूमल,पुरुषों से दूर अपने ही राग रंग मे डूबी रहती है | एक से एक खुबसूरत,बहादुर, गुणी,धनवान,जवान ,राजा,राजकुमार मूमल से शादी करने आये पर मूमल ने तो उनकी और देखा तक नहीं उसे कोई भी पसंद नहीं आया | मूमल ने प्रण ले रखा है कि वह विवाह उसी से करेगी जो उसका दिल जीत लेगा,नहीं तो पूरी उम्र कुंवारी ही रहेगी |"

कुछ ही देर मे मूमल की सहेली ने आकर कहा कि आप दोनों मे से एक को मूमल ने बुलाया है |
हमीर ने अपने साले महेन्द्रा को जाने के लिए कहा पर महिन्द्रा ने हमीर से कहा- पहले आप |
हमीर को मेड़ी के पास छोड़ सहेली ने कहा -"आप भीतर पधारें ! मूमल आपका इंताजर कर रही है |
हमीर जैसे ही आगे चौक मे पहुंचा तो देखा आगे उसका रास्ता रोके एक शेर बैठा है और दूसरी और देखा तो उसे एक अजगर रास्ते पर बैठा दिखाई दिया | हमीर ने सोचा मूमल कोई डायन है और नखलिस्तान रचकर पुरुषों को अपने जाल मे फंसा मार देती होगी | वह तुरंत उल्टे पाँव वापस हो चौक से निकल आया |

हमीर व महिंद्रा आपसे बात करते तब तक मूमल की सहेली आ गयी और महिंद्रा से कहने लगी आप आईये मूमल आपका इंतजार कर रही है |
महिंद्रा ने अपना अंगरखा पहन हाथ मे भाला ले सहेली के पीछे पीछे चलना शुरू किया | सहेली ने उसे भी हमीर की तरह चौक मे छोड़ दिया,महिंद्रा को भी चौक मे रास्ता रोके शेर बैठा नजर आया उसने तुरंत अपना भाला लिया और शेर पर पूरे वेग से प्रहार कर दिया | शेर जमीन पर लुढ़क गया और उसकी चमड़ी मे भरा भूसा बाहर निकल आया | महिंद्रा यह देख मन ही मन मुस्कराया कि मूमल उसकी परीक्षा ले रही है | तभी उसे आगे अजगर बैठा दिखाई दिया महिंद्रा ने भूसे से भरे उस अजगर के भी अपनी तलवार के प्रहार से टुकड़े टुकड़े कर दिए | अगले चौक मे महिंद्रा को पानी भरा नजर आया,महिंद्रा ने पानी की गहराई नापने हेतु जैसे पानी मे भाला डाला तो ठक की आवाज आई महिंद्रा समझ गया कि जिसे वह पानी समझ रहा है वह कांच का फर्श है |

कांच का फर्श पार कर सीढियाँ चढ़कर महिंद्रा मूमल की मेड़ी मे प्रविष्ट हुआ आगे मूमल खड़ी थी,जिसे देखते ही महिंद्रा ठिठक गया | मूमल ऐसे लग रही थी जैसे काले बादल मे बिजली चमकी हो, एड़ी तक लम्बे काले बाल मानों काली नागिन सिर से जमीन पर लोट रही हों| चम्पे की डाल जैसी कलाइयाँ,बड़ी बड़ी सुन्दर आँखे, ऐसे लग रही थी जैसे मद भरे प्याले हो,तपे हुए कुंदन जैसा बदन का रंग,वक्ष जैसे किसी सांचे मे ढाले गए हों,पेट जैसे पीपल का पत्ता,अंग-अंग जैसे उफन रहा हो |

मूमल का यह रूप देखकर महिंद्रा के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा-"न किसी मंदिर मे ऐसी मूर्ति होगी और न किसी राजा के रणवास मे ऐसा रूप होगा |"महिंद्रा तो मूमल को ठगा सा देखता ही रहा | उसकी नजरें मूमल के चेहरे को एकटक देखते जा रही थी दूसरी और मूमल मन में कह रही थी - क्या तेज है इस नौजवान के चेहरे पर और नयन तो नयन क्या खंजर है | दोनों की नजरें आपस में ऐसे गड़ी कि हटने का नाम ही नहीं ले रही थी |

आखिर मूमल ने नजरे नीचे कर महिंद्रा का स्वागत किया दोनों ने खूब बाते की ,बातों ही बातों में दोनों एक दुसरे को कब दिल दे बैठे पता ही न चला और न ही पता चला कि कब रात ख़त्म हो गयी और कब सुबह का सूरज निकल आया |
उधर हमीर को महेन्द्रा के साथ कोई अनहोनी ना हो जाये सोच कर नींद ही नहीं आई | सुबह होते ही उसने नाई के साथ संदेशा भेज महिंद्रा को बुलवाया और चलने को कहा | महिंद्रा का मूमल को छोड़कर वापस चलने का मन तो नहीं था पर मूमल से यह कह-"मैं फिर आवुंगा मूमल, बार बार आकर तुमसे मिलूँगा |"

दोनों वहां से चल दिए हमीर गुजरात अपने वतन रवाना हुआ और महिंद्रा अपने राज्य अमरकोट |मूमल से वापस आकर मिलने का वायदा कर महिन्द्रा अमरकोट के लिए रवाना तो हो गया पर पूरे रास्ते उसे मूमल के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था वह तो सिर्फ यही गुनगुनाता चला जा रहा था -

म्हारी माढेची ए मूमल , हाले नी अमराणे देस |
"मेरी मांढ देश की मूमल, आओ मेरे साथ अमरकोट चलो |"

महेन्द्रा अमरकोट पहुँच वहां उसका दिन तो किसी तरह कट जाता पर शाम होते ही उसे मूमल ही मूमल नजर आने लगती वह जितना अपने मन को समझाने की कोशिश करता उतनी ही मूमल की यादें और बढ़ जाती | वह तो यही सोचता कि कैसे लोद्र्वे पहुँच कर मूमल से मिला जाय | आखिर उसे सुझा कि अपने ऊँटो के टोले में एसा ऊंट खोजा जाय जो रातों रात लोद्र्वे जाकर सुबह होते ही वापस अमरकोट आ सके |

उसने अपने रायका रामू (ऊंट चराने वाले) को बुलाकर पूछा तो रामू रायका ने बताया कि उसके टोले में एक चीतल नाम का ऊंट है जो बहुत तेज दौड़ता है और वह उसे आसानी से रात को लोद्र्वे ले जाकर वापस सुबह होने से पहले ला सकता है | फिर क्या था रामू रायका रोज शाम को चीतल ऊंट को सजाकर महेन्द्रा के पास ले आता और महेन्द्रा चीतल पर सवार हो एड लगा लोद्र्वा मूमल के पास जा पहुँचता | तीसरे प्रहार महेन्द्रा फिर चीतल पर चढ़ता और सुबह होने से पहले अमरकोट आ पहुँचता |

महेन्द्रा विवाहित था उसके सात पत्नियाँ थी | मूमल के पास से वापस आने पर वह सबसे छोटी पत्नी के पास आकर सो जाता इस तरह कोई सात आठ महीनों तक उसकी यही दिनचर्या चलती रही इन महीनों में वह बाकी पत्नियों से तो मिला तक नहीं इसलिए वे सभी सबसे छोटी बहु से ईर्ष्या करनी लगी और एक दिन जाकर इस बात पर उन्होंने अपनी सास से जाकर शिकायत की | सास ने छोटी बहु को समझाया कि बाकी पत्नियों को भी महिंद्रा ब्याह कर लाया है उनका भी उस पर हक़ बनता है इसलिए महिंद्रा को उनके पास जाने से मत रोका कर | तब महिंद्रा की छोटी पत्नी ने अपनी सास को बताया कि महिंद्रा तो उसके पास रोज सुबह होने से पहले आता है और आते ही सो जाता है उसे भी उससे बात किये कोई सात आठ महीने हो गए | वह कब कहाँ जाते है,कैसे जाते है,क्यों जाते है मुझे कुछ भी मालूम नहीं |

छोटी बहु की बाते सुन महिंद्रा की माँ को शक हुवा और उसने यह बात अपनी पति राणा वीसलदे को बताई | चतुर वीसलदे ने छोटी बहु से पूछा कि जब महिंद्रा आता है तो उसमे क्या कुछ ख़ास नजर आता है | छोटी बहु ने बताया कि जब रात के आखिरी प्रहर महिंद्रा आता है तो उसके बाल गीले होते है जिनमे से पानी टपक रहा होता है |

चतुर वीसलदे ने बहु को हिदायत दी कि आज उसके बालों के नीचे कटोरा रख उसके भीगे बालों से टपके पानी को इक्कठा कर मेरे पास लाना | बहु ने यही किया और कटोरे में एकत्र पानी वीसलदे के सामने हाजिर किया | वीसलदे ने पानी चख कर कहा-"यह तो काक नदी का पानी है इसका मतलब महिंद्रा जरुर मूमल की मेंड़ी में उसके पास जाता होगा |

महिंद्रा की सातों पत्नियों को तो मूमल का नाम सुनकर जैसे आग लग गयी | उन्होंने आपस में सलाह कर ये पता लगाया कि महेन्द्रा वहां जाता कैसे है | जब उन्हें पता चला कि महेन्द्रा चीतल नाम के ऊंट पर सवार हो मूमल के पास जाता है तो दुसरे दिन उन्होंने चीतल ऊंट के पैर तुड़वा दिए ताकि उसके बिना महिंद्रा मूमल के पास ना जाने पाए |

रात होते ही जब रामू राइका चीतल लेकर नहीं आया तो महिंद्रा उसके घर गया वहां उसे पता चला कि चीतल के तो उसकी पत्नियों ने पैर तुड़वा दिए है तब उसने रामू से चीतल जैसा दूसरा ऊंट माँगा |
रामू ने कहा -"उसके टोले में एक तेज दौड़ने वाली एक टोरडी (छोटी ऊंटनी) है तो सही पर कम उम्र होने के चलते वह चीतल जैसी सुलझी हुई व अनुभवी नहीं है | आप उसे ले जाये पर ध्यान रहे उसके आगे चाबुक ऊँचा ना करे,चाबुक ऊँचा करते ही वह चमक जाती है और जिधर उसका मुंह होता उधर ही दौड़ना शुरू कर देती है तब उसे रोकना बहुत मुश्किल है |

महिंद्रा टोरडी पर सवार हो लोद्र्वा के लिए रवाना होने लगा पर मूमल से मिलने की बैचेनी के चलते वह भूल गया कि चाबुक ऊँचा नहीं करना है और चाबुक ऊँचा करते ही टोरडी ने एड लगायी और सरपट भागने लगी अँधेरी रात में महिंद्रा को रास्ता भी नहीं पता चला कि वह कहाँ पहुँच गया थोड़ी देर में महिंद्रा को एक झोंपड़े में दिया जलता नजर आया वहां जाकर उसने उस क्षेत्र के बारे में पूछा तो पता चला कि वह लोद्र्वा की जगह बाढ़मेर पहुँच चूका है | रास्ता पूछ जब महिंद्रा लोद्र्वा पहुंचा तब तक रात का तीसरा प्रहर बीत चूका था | मूमल उसका इंतजार कर सो चुकी थी उसकी मेंड़ी में दिया जल रहा था | उस दिन मूमल की बहन सुमल भी मेंड़ी में आई थी दोनों की बाते करते करते आँख लग गयी थी | सहेलियों के साथ दोनों बहनों ने देर रात तक खेल खेले थे सुमल ने खेल में पुरुषों के कपडे पहन पुरुष का अभिनय किया था | और वह बातें करती करती पुरुष के कपड़ों में ही मूमल के पलंग पर उसके साथ सो गयी |

महिंद्रा मूमल की मेंड़ी पहुंचा सीढियाँ चढ़ जैसे ही मूमल के कक्ष में घुसा और देखा कि मूमल तो किसी पुरुष के साथ सो रही है | यह दृश्य देखते ही महिंद्रा को तो लगा जैसे उसे एक साथ हजारों बिच्छुओं ने काट खाया हो | उसके हाथ में पकड़ा चाबुक वही गिर पड़ा और वह जिन पैरों से आया था उन्ही से चुपचाप बिना किसी को कुछ कहे वापस अमरकोट लौट आया | वह मन ही मन सोचता रहा कि जिस मूमल के लिए मैं प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार था वह मूमल ऐसी निकली | जिसके लिए मैं कोसों दूर से आया हूँ वह पर पुरुष के साथ सोयी मिलेगी | धिक्कार है ऐसी औरत पर |
सुबह आँख खुलते ही मूमल की नजर जैसे महिंद्रा के हाथ से छूटे चाबुक पर पड़ी वह समझ गयी कि महेन्द्रा आया था पर शायद किसी बात से नाराज होकर चला गया |उसके दिमाग में कई कल्पनाएँ आती रही |
कई दिनों तक मूमल महिंद्रा का इंतजार करती रही कि वो आएगा और जब आएगा तो सारी गलतफहमियां दूर हो जाएँगी | पर महिंद्रा नहीं आया | मूमल उसके वियोग में फीकी पड़ गई उसने श्रंगार करना छोड़ दिया |खना पीना भी छोड़ दिया उसकी कंचन जैसी काया काली पड़ने लगी | उसने महिंद्रा को कई चिट्ठियां लिखी पर महिंद्रा की पत्नियों ने वह चिट्ठियां महिंद्रा तक पहुँचने ही नहीं दी | आखिर मूमल ने एक ढोली (गायक) को बुला महेन्द्रा के पास भेजा | पर उसे भी महिंद्रा से नहीं मिलने दिया गया | पर वह किसी तरह महेन्द्रा के महल के पास पहुँचने में कामयाब हो गया और रात पड़ते ही उस ढोली ने मांढ राग में गाना शुरू किया -

"तुम्हारे बिना,सोढा राण, यह धरती धुंधली
तेरी मूमल राणी है उदास
मूमल के बुलावे पर
असल प्रियतम महेन्द्रा अब तो घर आव |"

ढोली के द्वारा गयी मांढ सुनकर भी महिंद्रा का दिल नहीं पसीजा और उसने ढोली को कहला भेजा कि -"मूमल से कह देना न तो मैं रूप का लोभी हूँ और न ही वासना का कीड़ा | मैंने अपनी आँखों से उस रात उसका चरित्र देख लिया है जिसके साथ उसकी घनिष्ठता है उसी के साथ रहे | मेरा अब उससे कोई सम्बन्ध नहीं |"

ढोली द्वारा सारी बात सुनकर मूमल के पैरों तले की जमीन ही खिसक गई अब उसे समझ आया कि महेन्द्रा क्यों नहीं आया | मूमल ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे एसा कलंक लगेगा |
उसने तुरंत अमरकोट जाने के लिए रथ तैयार करवाया ताकि अमरकोट जाकर महिंद्रा से मिल उसका बहम दूर किया जा सके कि वह कलंकिनी नहीं है और उसके सिवाय उसका कोई नहीं |

अमरकोट में मूमल के आने व मिलने का आग्रह पाकर महिंद्रा महिंद्रा ने सोचा,शायद मूमल पवित्र है ,लगता है मुझे ही कोई ग़लतफ़हमी हो गई | और उसने मूमल को सन्देश भिजवाया कि वह उससे सुबह मिलने आएगा | मूमल को इस सन्देश से आशा बंधी |

रात को महेन्द्रा ने सोचा कि -देखें,मूमल मुझसे कितना प्यार करती है ?"'

सो सुबह उसने अपने नौकर के सिखाकर मूमल के डेरे पर भेजा | नौकर रोता-पीटता मूमल के डेरे पर पहुंचा और कहने लगा कि -"महिंद्रा जी को रात में काले नाग ने डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी |

नौकर के मुंह से इतना सुनते ही मूमल पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ी और पड़ते ही महिंद्रा के वियोग में उसके प्राण पखेरू उड़ गए |

महेन्द्रा को जब मूमल की मृत्यु का समाचार मिला तो वह सुनकर उसी वक्त पागल हो गया और सारी उम्र"हाय म्हारी प्यारी मूमल,म्हारी प्यारी मूमल"कहता फिरता रहा |

एक और जैसलमेर के पास लोद्र्वा में काक नदी आज भी कल-कल करती मूमल और महिंद्रा की अमर प्रेम कहानी सुना रही है

Tuesday, 28 May 2013

Rajpoot vans or niwas sthan

During net surfing today i found this list , special thanks for unknown someone who collected this list and shared online.

I am reposting here so the we all can benefit in future ...


क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला

1 सूर्यवंशी कश्यप् सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
2 गुहिलवन्शी गहलोत बैजपायण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
3 गुहिलवन्शी सिसोदिया बैजपायन्,काश्यप् सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट
4 कछवाहा मानव्य् सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
5 राठोड कश्यप, सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
6 सोमवंशी अत्रैय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई
7 यदुवंशी अत्रैय चन्द राजकरौली राजपूताने में
8 भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना
9 जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज
10 जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
11 तन्वर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
12 कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई
13 पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर
14 परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये
15 तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
16 पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
17 सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
18 चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र
19 हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश
20 खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर
21 भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
22 देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज
23 शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
24 बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर
25 राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
26 पवैया वत्स चौहान ग्वालियर
27 गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
28 वैस भारद्वाज चन्द्र उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
29 गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
30 सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
31 कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
32 बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर बलिया गोंडा प्रतापगढ में हैं
33 निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
34 सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर
35 च्चाराणा दहिया चन्द जालोर, सिरोही केर्, घटयालि, साचोर, गढ बावतरा,
36 कटहरिया वशिष्ठ या भारद्वाज सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
37 वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
38 बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
39 झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा
40 गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर
41 रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी
42 करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध
43 चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
44 जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में
45 बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी
46 दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
47 सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी
48 सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
49 सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में
50 सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड
51 मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा आगरा धौलपुर
52 टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब
53 गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है
54 कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर
55 भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
56 गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर , मार्टींनगँज आजमगढ
57 पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना
58 ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला
59 वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस
60 जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी
61 नैय्दु वैक्ला सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु अन्ध्र कर्नाटक में
62 निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत
63 वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर
64 दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना
65 पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
66 तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर
67 कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा
68 चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
69 अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
70 डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
71 गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड
72 बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे
73 काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा
74 जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे
75 गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में
76 मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था
77 लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था
78 बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है
79 पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
80 सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है
81 कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
82 पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है
83 बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
84 काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
85 सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
86 दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर
87 जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड
88 मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है
89 बल्ला भारद्वाज सूर्य काठियावाड मे मिलते हैं
90 डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान
91 खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर
92 सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा
93 पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं
94 पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब
95 बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद
96 बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर
97 भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर
98 चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर
99 चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर
100 धाकरे भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
101 धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस
102 धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद
103 दोबर(दोनवर) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
104 हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ
105 जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा
106 जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर
107 जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा
108 जोतियाना(भुटियाना) कश्यप कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ
109 घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर
110 कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में
111 काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ
112 कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर
113 किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में
114 बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार
115 लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद
116 मौनस मानव्य कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
117 नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
118 पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
119 रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में
120 सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद
121 तरकड कश्यप दीक्षित शाखा आगरा मथुरा
122 तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया
123 तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर
124 उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर
125 भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ
126 भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव
127 जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड
128 सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड
129 किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड
130 टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड
131 खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी
132 पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड
133 सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड
134 खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य
135 खाती कश्यप दीक्षित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
136 आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ
137 उदावत बैजवापेण गहलोत आजमगढ
138 उजैने वशिष्ठ पंवार आरा डुमरिया
139 अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर
140 दुर्गवंशी कश्यप दीक्षित राजा जौनपुर राजाबाजार
141 बिलखरिया कश्यप दीक्षित प्रतापगढ उमरी राजा
142 डोमरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया
143 निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)
144 जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब
145 नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा
146 भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर
147 गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर
148 रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड
149 कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड
150 रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड
151 द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर
152 इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर
153 छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
154 जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी
155 हैहैय्वन्श् नारायण् सूर्य प्राचीन राज वंश,बलिया


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